रिश्तों का महत्व
- हमारे समाज में गोत्र भी लगभग बहुत है! जबकि बहुत सी समाज में तो कम गोत्र होती है। अत: हमारे समाज में वैवाहिक सम्बंध जोड़ने में कहीं भी कोई परेशानी नहीं आती । अब हम हमारी जाति के विभिन्न रिश्तों सम्बंधी कुछ विशेष बातों की ओर भी कुछ प्रकाश डालना चाहते है –
- गोत्र मिलान :- समाज में लड़के-लड़कियों के सम्बंध निश्चित करने से पूर्व पहले आपसी स्तर पर गोत्र मिलाये जाते है फिर पंडित जी के मध्य दोनों पक्षों के गोत्र मिलाये जाते है और गोत्र नहीं टकराने की स्थिति में ही पंडित जी की सहमति के पश्चात् रिश्ता तय किया जाता है ।
- हमारे समाज में मुख्य रूप से लड़के व लड़की दोनों ही पक्ष के गोत्र मिलाये जाते है । इनमें पित्र पक्ष के अर्थात् खुद का तथा मातृ पक्ष के अर्थात् माँ का गोत्र मिलाया जाता है । इसके अतिरिक्त अथवा पिता कही गोद गया हो व पगड़ी बंधी हो उनका गोत्र भी टाला जाता है, इन बातों का स्पष्ट मिलान किया जाता है । किन्तु यदि कहीं जाने अनजाने गोत्र बताना रह गया तो कई बार बने बनाये रिश्ते टूट जाते है । अब तो समाज में उपयुक्त लड़के-लड़कियों की कमी नहीं है तथा रिश्ते भी अब लोग दूर-दूर तक करने लग गये है । समाज का विस्तार होने के कारण अब रिश्ता मिलने में कोई परेशानी नहीं होती है ।
- अब स्त्री एवम् पुरूष दोनों को समान अधिकार है । अत: पुरूष की गोत्र को टाला जाता है तो स्त्री की गोत्र को भी टालना भी न्यायोचित है इसमें भेदभाव करना उचित नहीं है ।
- वैसे जैविक विज्ञान की दृष्टि से भी देखा जाये और यह मान लें कि सन्तानोत्पत्ति में पुरूष का अंश 60% तथा स्त्री का 40% होता है । अत: सन्तान का रिश्ता कायम करते समय दोनों ही पक्ष के गोत्रों को समान रूप से मानकर मातृ व पितृ पक्ष के गोत्र ही टालना उचित व न्याय संगत होगा ।
- इसके अतिरिक्त हमारे समाज के पूर्वजों का पारस्परिक रिश्तों के सम्बंध में बहुत ही अच्छा दृष्टिकोण रहा है जिसकी अत्यधिक प्रशंसा की जानी चाहिए है । इस विषय में नई पीढ़ि को तथा बोलचाल व व्यवहार में रिश्तों की अनेदखी करने वाले लोगों को, इस विषय की जानकारी देना आवश्यक है ।
- साली का रिश्ता :- हम बड़े भाई को पिता के समान व छोटे भाई को पुत्रवत् मानते है इसी प्रकार महिलायें भी बड़ी बहिन को मातृवत व छोटी को पुत्री समान मानती है । इसी प्रकार अपनी अर्धांगिनी की छोटी बहिन को भी पुत्रीवत् व बड़ी बहन को बड़ सास यानी सासवत् मानते है ऐसी ही पत्नी भी जेष्ठ को पिता समान व देवर को पुत्रवत् ही मानते है रामचरित्र मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी कहा है कि-
- “तात तुम्हारि मातु वैदेही, पिता राम सब भाँति स्नेही ।”
- इसी प्रकार फिर कहा है कि
- अनुज बधु भगिनी सुतनारी, सुनहू सठ कन्या समचारी ।
- इनही कुदृष्टि विलाकत सोई, ताहि बधे कछु पाप न होई ।।
- इसलिये घर परिवार में किसी काम काज के समय साली को बुलाते है तथा उसको बहिन की तरह ही कपड़े देते है, कई लोग तो पूरी पहरावणी भी देते है,
- इसलिए उक्त मर्यादा का पालन करते हुये हमारे समाज में साली से पुनर्विवाह नहीं करना चाहिए। यदि किसी ने किया हो तो वह अनुचित व निन्दनीय है ।
- भौजाई (भाभी) से रिश्ता :- हम लोग इसी प्रकार भौजाई को भी माँ के समान ही मानते है ।